बदली
मैं
हूँ एक बदली, कुछ
बदली-बदली |
धुन है
सवार कुछ करने की,
आगे
बढ़, न
पीछे मुड़ने की,
न
अलसाई , न
मुरझाई,
हूँ
शरद धूप सी खिली-खिली |
मैं एक
बदरी, कुछ
बदली-बदली |
नाम
पुराना ,रूप
नया है,
आशा-विश्वास
से सिंचित हूँ,
नहीं
लाचार तनिक भी |
मैं एक बदली, कुछ
बदली-बदली |
दृढ़ता से डटती हूँ, नहीं
किसी से डरती,
बढ़ती
संकल्पों की गठरी लेकर,
मन में
उमंगे नित नई नई |
मैं एक बदली, कुछ
बदली-बदली |
करने
हैं कितने काम बड़े!
युग
परिवर्तन की चाह लिए,
चलती निरंतर
बिन विश्राम लिए,
मैं एक बदली, कुछ
बदली-बदली |
बरसाती
हूँ मैं अपनापन ,
हर
लेती मन का सूनापन.
हर
पीड़ा को हरने की चाह लिए,
बन
जाती हूँ अक्षय वट सी,
मैं एक बदली, कुछ
बदली-बदली |
हर ऋतु
ही तो मेरी है ,
जिसमें
भी देखो छाया मेरी है,
कभी
बरसती माँ की ममता बन,
कभी
बनती बौछारें राखी के तारों की ,
मैं एक बदली, कुछ
बदली-बदली |
कभी
प्रेयसी बन जीवन को
करती
झंकृत मधुर वीणा के तारों सी
कभी बेटी बन करती आँगन को
गुंजित
,कोयल की मीठी तानों सी
मैं एक बदली, कुछ
बदली-बदली |